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अब दिखायेगा वो जमाल कहाँ / कांतिमोहन 'सोज़'

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नज़्रे-ग़ालिब

अब दिखाएगा वो जमाल कहाँ ।
अब मुझे ख़्वाहिशे-विसाल कहाँ ।।

कोई चाहत कोई सवाल कहाँ ।
दिल में लेकिन कोई मलाल कहाँ ।।

कौन बांधेगा किसको बांधेगा
अर्श पर क़ुमक़ुमों का जाल कहाँ ।

एक लम्हे की है तलाश मुझे
अब मुझे फ़िक्रे -माहो-साल कहाँ ।

मैं तो अपनी तलाश में गुम हूँ
तू कहाँ और तेरा ख़याल कहाँ ।

सख़्त पसमांदगी का मंज़र है
अब लहू में कोई उबाल कहाँ ।

वो भी ग़ालिब का है पनाहगुज़ीर
सोज़ के पास अपना माल कहाँ ।।