कितना पसन्द करते हैं हम दिखावा
और सहज ही भूल जाते हैं यह बात
कि बचपन में होते हैं सब मौत के निकट
उससे अधिक, जितना वयस्क होने के बाद
बच्चा जब सो नहीं पाता ढंग से
वह गुस्सा दिखाता है तब भोजन पे
जीवन की सब राहों पर मैं हूँ अकेला
नाराज़ होऊँ भी तो भला मैं किस जन पे
जीवन के अचेत पड़े इस गहरे जल में
मछलियाँ खेलें खेल, जानवर गिरायें बाल
बेहतर कि हम न सोचें यह -- कैसा है
लोगों की इच्छाओं व चिन्ताओं का हाल
अप्रैल 1932