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इस ब्रह्मांड में होगा क्या / ओसिप मंदेलश्ताम

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इस ब्रह्माण्ड में होगा क्या और भी कहीं
पथरीला कोई पिण्ड ऐसा, जैसी यह जमीं

अप्रीतिकर कविता वह सहसा गिरी ऐसे
अपने ही रचयिता से अनजान हो जैसे

क्रूरता, नृशंसता, निठुरता और संगदिली
भावना यह सृष्टा को अचानक ही मिली

इसके लिए निन्दा उसकी कोई नहीं करता
वह विधाता है, बन्धु, किसी से नहीं डरता