भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्चना / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 22 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश कुमार विकल |संग्रह=अरिपन / नर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तोरासँ माय आब बजबों ने हम गे।
निष्ठुर करेज तोहर हमहूँ जनैछी
रूसल छी हम आ तें ने बजै छी
जिनगी बितौलहूँ तोहरे चरण मे
तोहर द्वारि छोड़ चललहुँ हम गे।
बेटा छी तोरे आ ठोकर मारै छें
बिनु आगि जीविले मे हमरा जारै छें
हमरा सन बेटा पर निर्दय बनलि छें
कऽह नै कसूर कोन कयलहुं हम गे।
देखने जो ओ बेटा घुरियो तकै छौ
अक्षत-चानन की मायो कहै छौ
तोहूँ बनल छें लोभी गे बुढ़िया
तोरा लेल केलियौ हम की कम गे।
एहन जे करबें तऽ घुरियो ने तकबौ
हमरा तों कनबै छें हम कोना देखबौ
जेकरा दरेग ने तोरा लेल छै गे
ओकरा लेल सभ किछु हमरे लै छें दम गे।