भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रूप-सुन्दरी / नरेश कुमार विकल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 22 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश कुमार विकल |संग्रह=अरिपन / नर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रूप अहाँक फूटल महकार लगैये।
शरद्क इजोरिया मे अन्हार लगैये।

आँखि दूनू धंसल जेना खाड़ी बंगाले कें,
नीमकी सन चोकटल देखू दूनू गाल कें,
दाँत बूझ् हरक फार लगैये।
शरद्क इजोरिया मे अन्हार लगैये।

केश राशि एहेन जेना ठाढ़ रोइयाँ भालु कें,
नाकक गोलाइ ठीक शीशापानी आलु कें,
ओहि बीच दूटा इनार लगैये।
शरद्क इजोरिया मे अन्हार लगैये।

घोड़ा जकाँ चालि वाकि चालि कहू बाघ कें,
मोड़ा जकाँ पेट थिक बखारी खाली माघ कें,
बोली मे नागक फुफकार लगैये।
शरद्क इजोरिया मे अन्हार लगैये।

अहाँक संग एक दिन पहाड़ लागय हमरा,
नेना कें डेराबय से बिलाड़ लागय हमरा,
अहाँ कें अबिते बोखार अबैये।
शरद्क इजोरिया मे अन्हार लगैये।

आंगुरक पोर जेना पोर कुसियार कें,
दारा सिंहक देह कोना सम्हरत पंजनिहार कें,
ओहार लागल मंहफा उलार लगैये।
शरद्क इजोरिया मे अन्हार लगैये।