Last modified on 22 अप्रैल 2015, at 23:38

दाग लागल जिनगी / नरेश कुमार विकल

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 22 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश कुमार विकल |संग्रह=अरिपन / नर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फूलक़ सेज पर ने निन्न आबैये।
दर्दक टीस एहन देह जारैये।

बादर बनेलहूँ जकरा बनि गेल चिनगी
कोना भरि राति काटब दाग लागल जिनगी
कतबो मनाबी ने मोन मानैये
दर्दक टीस एहन देह जारैये।

बनि गेल नाग हमर गर्दनि कें हार
दीप बिना बाती के पूजाक थार
खसय ने नोर मुदा आँखि कनैये
दर्दक टीस एहन देह जारैये।

आंचर मे हमरा तरेगन आर चान
तैयो भरि जिनगी के मुँह म्लान
पाथर सँ काँच कठोर लगैये।
दर्दक टीस एहन देह जारैये।