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आओ / मोहन आलोक

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बावड़ा भीड़ सूं
बस करां
आओ।
मिनख री मोत पर
हरजस करां।
पेट पग अळगा हुवै जठै
सरम रै सांध पर, कियां-
ई रयोड़ी लीरड़ी-लीरड़ी चीरड़ी नै
सुई तागै सूं सियां।

कुवै में जावती
लाव थामां
भूण रै हाथ द्यां
कीं कस करां।
बावड़ां भीड़ सूं
बस करां
आओ।
मिनख री मोत पर
हरजस करां ।
अओ।
बीं काल री बात री
मुंहकाण द्यां सि धुणां
‘चौखलै’ चमार री
‘स्यान्तड़ी’ साथै
हुये बीं गजब नै गुणां।

हिये पर हाथ राखां
अर
गांव री गांव में हुई
ईं उपर

कीं इमरस करां
बावड़ां भीड़ सूं
बस करां

आओ

आओ।
कीं भेळा हुवां
संकड़ां

साप हां
ऊंदरै रै बिल में बड़ा।
बैवंती सड़क है
सहर है
लोगां री भीड़़ है
बड़ी
कीं रै ई पगतळै
दब ज्यावै नीं पूंछड़ी
सांवटां
ख्यांत राखां
क्यूं हुवां सिरां-धड़ां।
मूंडै में जहर है
उगळां क्यूं
यूं करां
जणां गा’ली भरै
कुलै
भाठां रै बटका भरां
का
पड्या-पड्या आप रै ई
मुड़-मुड़ लड़ां।
आओ।
कीं भेळा हुवां
संकड़ां
सांप हां
ऊंदरै रै बिल में बड़ां ।