भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहीद / खुजंदी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:49, 2 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKCatKavita}} {{KKAnthologyDeshBkthi}} <poem> शहीदों के ख़ूं का असर देख ले...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शहीदों के ख़ूं का असर देख लेना,
मिटाएंगे ज़ालिम का घर, देख लेना।
किसी के इशारों के हम मुंतज़िर हैं,
बहा देंगे ख़ूं की नहर, देख लेना।
झुका देंगे गर्दन को हम ज़ेरे-ख़ंजर,
ख़ुशी से कटाएंगे सर, देख लेना।
जो ख़ुदग़र्ज़ गोली चलाएंगे हम पर,
तो क़दमों में उनका ही सर देख लेना।
जो नख़्ल हमने सींचा है ख़ूने-जिगर से,
वो होगा कभी बाग़बर, देख लेना।
किनारे लगेगी भंवर से ये किश्ती,
वो आएगी एक दिन लहर, देख लेना।
बलाएं ये जाएंगी ख़ुद सरनगूं हो,
नहीं होगी इनकी गुज़र, देख लेना।
‘खुजंदी’ हुआ हिंद आज़ाद अपना,
छपेगी ये एक दिन ख़बर देख लेना।
रचनाकाल: सन 1930