भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप का गीत / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:58, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण
धूप धरा पर उतरी
जैसे शिव के जटाजूट पर
नभ से गंगा उतरी ।
धरती भी कोलाहल करती
तम से ऊपर उभरी !!
धूप धरा पर बिखरी !!
बरसी रवि की गगरी,
जैसे ब्रज की बीच गली में
बरसी गोरस गगरी ।
फूल-कटोरों-सी मुसकाती
रूप भरी है नगरी !!
धूप धरा पर निखरी !!