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कंचन-किरणें / केदारनाथ अग्रवाल

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धीरे से पाँव धरा धरती पर किरनों ने,

मिट्टी पर दौड़ गया लाल रंग तलुवों का ।

छोटा-सा गाँव हुआ केसर की क्यारी-सा,

कच्चे घर डूब गए कंचन के पानी में ।

डालों की डोली में लज्जा के फूल खिले,

ऊषा ने मस्ती से फूलों को चूम लिया ।

गोरी ने गीतों से सरसों की गोद भरी,

भौरों ने गोरी के गालों को चूम लिया ।