Last modified on 28 फ़रवरी 2008, at 09:23

बुन्देलखंड के आदमी / केदारनाथ अग्रवाल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:23, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हट्टे-कट्टे हाड़ों वाले,

चौड़ी, चकली काठी वाले

थोड़ी खेती-बाड़ी रक्खे

केवल खाते-पीते जीते !

कत्था चूना लौंग सुपारी

तम्बाकू खा पीक उगलते,

चलते-फिरते, बैठे-ठाढ़े

गन्दे यश से धरती रंगते !

गुड़गुड़ गुड़गुड़ हुक्का पकड़े,

ख़ूब धड़ाके धुआँ उड़ाते,

फूहड़ बातों की चर्चा के

फौवारे फैलाते जाते !

दीपक की छोटी बाती की

मन्दी उजियारी के नीचे

घण्टों आल्हा सुनते-सुनते

सो जाते हैं मुरदा जैसे !!