Last modified on 9 मई 2015, at 11:38

जे अै न होंवता / निशान्त

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:38, 9 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |अनुवादक= |संग्रह=आसोज मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुंवारै-सुंवारै
जद आपां
नहा-धो रैया होवां
बै आवै
बुहारै-झाड़ै आपणी गळी
धोवै गंदी नाळयां
उठा‘र ले ज्यावै कूटळो
छठ-बारह म्हीना स्यूं
काढै गंदै नाळै री
मणां-टणां सिड़ती गाार
सोचूं-
जे अै न होंवता
आपां बैठया होंवता
गंदगी रै ढिग पर ।