ज़िन्दगी-ज़िन्दगी-2 / अर्सेनी तर्कोव्स्की
अगर तुम हो मकीन एक मकान के — तो वह मकान गिरेगा नहीं ।
मैं किसी भी शताब्दी को पुकारकर पास बुला लूँगा ।
फिर उसमें दाख़िल होकर एक घर बना लूँगा ।
अकारण नहीं कि तुम्हारे बच्चे और बीवियाँ
मेरे साथ एक ही मेज़ पर बैठे हैं, —
और बैठे हैं तुम्हारे पुरखे और पौत्र-प्रपौत्र भी :
भविष्य यहीं इसी वक़्त निर्मित हो रहा है,
अगर मैं अपना हाथ ज़रा भी ऊपर उठाऊँ,
रौशनी की पाँचों शुआएँ तुम्हारे साथ बनी रहेंगी ।
हर रोज़ मैंने अपनी हँसली पर लकड़ी के कुन्दे की तरह
अतीत को उठाए रखा,
मैंने समय को ज़मीन की पैमाइश करने वाली ज़ंजीर से नापा
और ऐसे उसे पार किया किया जैसे पार कर रहा होऊँ उराल पर्वतमाला ।
(१९४२)
(रूसी मूल से किटी हंटर-ब्लेअर और वर्जीनिया राउण्डिग के अँग्रेज़ी अनुवाद से अनूदित)