भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
था मुस्तआर / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:16, 18 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |संग्रह=कहने लगा कि देख के चल / विष्...)
नीम के तने पर
टांग दी है
कहारों ने पालकी
गली में
सो गया है
सूरज !