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सत्य सूर्य: वयसपूर्य / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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वयस अतीत तीत रहितहुँ स्मृति-पाक पागि भेल मीठ
बुझि पड़इछ रसाल - रस चूसल शेष वयस भेल सीठ
अङ्कुल, बङ्कुल, दल फूटल दुइ मुकुलित पुलकित देह
सिंचित करइत श्रम-जल मालिनि प्राण पुरल भरि नेह
दल किसलय नव मुकुल मृदुल दृग मोहय कुसुमक वृन्त
सौरभ श्वास - श्वास उमड़य सुरभित कय, दिशा-दिगन्त
ने आपतक तपन, ने पावस-पवन बहय पुर - जोर
मुकुलित तन, विकसित मन, विहँसय शरद साँझ मधु भोर
आशा - दीप अखण्ड बरैछ, मनक मन्दिर आलोक
ने जगत क झझा - जंजालक झोंक, न चिन्ता - शोक
वयस - सन्धि सन्ध्याक क्षितिजपर रेखा उदित उदार
छिटकि चटुल चन्द्रिका चमकि जगमगा देल संसार
नयन चकोर चान ुख निरखय तृषा शमित नहि भेल
जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल’
मधुमय मधु - यामिनी, कामिनी संग रभस - रस रंग
जागि गमाओल, प्यास रसक न भिझाओल निमजि तरग
कत हबि चढ़ाय मनक अगिनिक नहि मेटल भूख
कतबहु नदी नहायल तदपि रहल मन रूखक रूख
स्पृहा-नखत कत हृदय - गगन बिच झिलमिल झलफल जोति
मिझा रहल, किछु बुझा रहल टुटइत मन मानिक - मोति
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देखिअ प्राची दिशा - रेतपर बहय प्रभाती स्रोत
अमल कमल अरुणिम रस उछलल अलि-दल पड़ि गेल नीत
उन्मद उड़ि-उड़ि अलिकुल घुरि फिरि पल-पल सेवल आबि
कते सुनाओल गीत प्रीत - रस गुन - गुन नव धुनि गाबि
नव प्रभात जीवनक वनक छल नव - ऋतु वयस वसन्त
सोरभ सुमन रूप रस बाँटल दु्रम - वल्ली रसवन्त
चढ़ल दिवस, रविकर - निकरक तिख तपस बढ़ल दिनमान
जीवन ज्वलित शिखा दगधल कामना शलभ उपमान
कटु कठोर संघर्ष जीवनक घोर, न कोमल भाव
आब प्रभाव रखैछ बहैछ जखन मरु वायु - अभाव
रस प्रभावमे दाह, मलयमे लय सुरभिक भय गेल
पिअरायल मुख, नुका चान कत? उड्गन कहुँ चलि देल?
अली गली मे जाय नुकायल कली - कली निस्तत्त्व
कण्ठ कोकिलक बझल बिझायल पंचम स्वर पंचत्व
अशन - वसन सबहु क अकाल अछि न पुनि स्वर्ग - अपवर्ग
नरक नर क हित प्रस्तुत करइछ शोषक शोषित वर्ग
ज्ञान विना प्रज्ञा क ज्ञापिते संहारक विज्ञान
सत्य अहिंसा शान्ति शब्दगत, अर्थ अनर्थ प्रमाण
विश्व विभाजित देश - देशमे देशहु खण्ड प्रखण्ड
अणु - परमाणु बनाय भूमिकेँ शून्य गगन उद्दण्ड
कतहु योग भोगाय स्वाहा, कतहु भोग योगाय
कतहु श्रेय लय गेल प्रेय दबि, श्रेयहु प्रेय बिलाय
विषम परिस्थितिमे स्थिति समता, चाहय जर्जर विश्व
आइ तकर हित तर्पक हैत नहि क्यौ जनमहिसँ निःस्व
जा धरि नहि उपभोग - योग्य दुर्बल दुर्गत संसार
ता घरि भोग न योग्य, योगहिक व्यक्ति-व्यक्ति संचार
कर्मठ तपी तपन गगनक कुटीर बिच साधक धीर
तपथि आतपेँ वितरथि ज्योति जगत नहि विरमथि वीर
सत्य सूर्य कर्तव्य क तपइछ नहि छन कतहु विराम
घोषित तथ्य श्रमे विश्राम, अलस आराम हराम
सत्य सूर्य अछि उपर, अधर पुनि बसय पूर्य तुलि गेल
गगन गनित युग - युगक कल्पना वस्तु - निष्ठ जनि भेल