भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे रघुवर को जानत मन की / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:22, 23 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे रघुवर को जानत मन की।
जानत हैं रघुवीर कृपा निधि प्रीति प्रतीति देख निज जन की।
ऐसी प्रीति रीति के कारण पावन करी भीलनी वन की।
पीपा की परतीत बड़ाई गई भक्त सुगति भई तिन की।
राना जिहर दियो मीरा को नाम प्रताप ताप गई तन की।
कहत पुकार-पुकार दीन हों नाम लेत तर गई गनका सी।
ऐसों प्रबल काल नहिं दीसत सीमाराम भजन रति तिन की।
प्रनत पाल करनानिधान हर पल-पल खबर करत दासन की।
जूड़ीराम गरीब निबाजो भारी तपन बुझावत तन की।