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लूओं पर चढ़ घुमर घिरती... / कालिदास
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लूओं पर चढ़ घुमर घिरती धूलि रह-रह हरहरा कर
चण्ड रवि के ताप से धरती धधकती आर्त्र होकर
प्रिय वियोग विदग्ध मानस जो प्रवासी तप्त कातर
असह लगता है उन्हें यह यातना का ताप दुष्कर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !