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गीत - 3 / मुकुटधर पांडेय

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देख सकूँ मैं इस जीवन में तुम्हें न जो भगवान
पाया मैंने तुम्हें नहीं तो बना रहे यह ध्यान
भूल न जाऊँ, दुःख मैं पाऊँ आठों पहर महान
पूरा करके जगती तल में निज आदान-प्रदान
चाहे जितने दिन जीवन के मेरे करे प्रयाण
भूल न जाऊँ, दुःख मैं पाऊँ आठों पहर महान

जीवन-यात्रा में थक जावें यदि मेरे ये प्राण
जाऊँ यदि मैं बैठ मार्ग में होकर श्रम से म्लान
फैलाऊँ यदि अपना बिस्तर धूलों में मुदमान
अभी मार्ग है बाकी सब तो बना रहे यह ध्यान
भूल न जाऊँ, दुःख मैं पाऊँ आठों पहर महान

चाहे हास-विलास-युक्त नित हो मेरे घर गान
चाहे मधुर छिड़े जितनी ही वर वंशी की तान
चाहे अपना गेह सजा लूं मैं बैकुण्ठ समान
किन्तु नहीं तुम वहाँ पधारे, बना रहे यह ध्यान
भूल न जाऊँ, दुःख मैं पाऊँ आठों पहर महान।

-हितकारणी, फरवरी, 1919 (गीतांजली से भावानुवाद)