भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एकाएक / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 17 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र जैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कल तक सब कुछ यथावत था
आज एकाएक मैंने गौर किया और
स्तब्ध होकर दीवार पर टँगे चित्र को
देखता ही रहा
चित्र में वर्णित दृश्य का एक हिस्सा
चित्र से बाहर निकल कर
दीवार से लटक रहा था
वहाँ दरख़्त की सूखी जड़ें
फ्रेम से बाहर निकल आई थीं
जैसे भूकम्प की हल्की-सी तरंग
उस चित्र के आर-पार हो गई थी
अगली सुबह मैंने देखा
दृश्य गायब था और
मैं खाली कैनवास के सामने हताश खड़ा था ।