भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ीमा जंकशन (भाग-3 / येव्गेनी येव्तुशेंको

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:42, 6 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको |अनुवादक=र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अच्छा चीयर्स और ईश्वर करे वह अंतिम न हो
हमने पिया, मजाक किया, उत्तेजित हुए
अचानक बहिन ने पूछा मुझसे
क्या मार्च में मैं ‘हाल ऑफ कॉमन्स’ में था?
और चेहरे यकायक गम्भीर हो गये थे
उन्होंने वर्ष-भर के बारे में पूछा
साल के आकर्षणों के बारे में
घटनाओं-चिंताओं और दीर्घ परिवर्तनों के बारे में।
मामा बोल्द्या ने चश्मा ठीक किया
‘आजकल’, उन्होंने कहाμ‘ऐसा व्यवहार कर रहे हैं हम
जैसे दार्शनिक हों’
समय है जिसमें हम रहते हैं
लोग सोच रहे हैं
कहाँ? क्या? कैसे? उत्तर जल्दी नहीं मिलते।
डाक्टर अब सजग हो गये
हाँ, लोग परेशान क्यों रहें
यह है
यह एक अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रा है
और वह मनहूस बेरिया, मैं जानता हूँ
कहते हुए कि कहना अर्थहीन न हो
ऐसे दिनों में क्या मंडराता है भावनाओं के ऊपर
‘तुम मास्को में रहते हो,
चीजें कुछ स्पष्ट हैं वहाँ
इस बारे में कहो व्याख्या करो’
बोलने के लिये मजबूर किया उन्होंने मुझे
कि वे किसी से नहीं कहेंगे
उन्होंने हाथ से सिगरेट भरी
और उत्तर का इंतज़ार करने लगे
और मैं सोचता हूँ कि
सही था मैं
मेरे मामा सावधान थे
हर तरफ से सच के प्रति
और उनके दोस्तों में था मैं
चुपचाप कुछ कहने के लिए
‘बाद में कहूँगा मैं तुमसे’।
जैसा मैं चाहता था
घास की अटारियों पर था मेरा बिस्तर
जहाँ लेट कर मैंने देर गए तक रात को सुना
मुहँ से बजाए जाने वाले बाजे को
कहीं हो रहे नाच को
और कोई नहीं था मेरे साथ वहाँ
ठंड थी बिस्तर के बिना
हिलते हुए पास के अट्टाल पर
और मेरा बड़ा भाई निक्की फुर्ती से
सोने के लिये ले गया मुझे
अपनी (विदेशी) टॉर्च को दिखाता हुआ
ले गया बातचीत को आगे बढ़ाता हुआ।
लेकिन मैंने नहीं जाना
व्यक्तिगत स्तर पर सिन्याव्स्की को
क्या मैंने हैलीकॉप्टर कभी नहीं देखा!
सुबह हुई
हल्की नमी में मैं
भूसे के पास बोरियों में बैठने गया
जेब तक निचली सतरों के गुलाब
मुर्गों के सिर पर ठहर नहीं गए
मुर्गों की लोहित कलगियाँ बनकर।
चमकती हुई धूल छंटी
दूर कुछ, मकान दिखाई दिये
ऊँचे खम्भों पर पक्षी घोंसलों में
छिप रहे थे
मैदान में तालाब की ओर चुपचाप
जा रहा था गायों का झुण्ड
सड़क के अकेले में बूढ़ा चरवाहा
चिल्ला रहा था
थोड़ा-बहुत रोज की तरह।
ओह, हर तरफ से दबी हुई थी शक्ति
और मूर्त पवित्राता
मैं किसी भी चीज के बारे में
कुछ नहीं सोचना चाहता था।
नाश्ता भूलते हुए
फटकारों को अनसुना करते हुए
या जेब में रखी हुई रोटियों के साथ
उजाले में घूमते हुए
(स्कूल से फूटने से लेकर अब तक)
मैंने नदी पार की
और पार किया किनारे पर
पुराने बालू का ढेर
धंसे हुए पांव को गुनगुने रेत से उठाते हुए
रेत की अलग-अलग पर्तों पर लोटते हुए
पानी की लगातार छलकती हुई आवाज में
धीरे-धीरे तैरते
डूबते उभरते तने
दूर बजती हुई सीटियों का शोर
गुनगुनाते मच्छर
और पास ही रेलवे का एक अधेड़ आदमी
घुटनों-घुटनों तक
पायजामा उठाया हुआ
बलसा पकड़े हुए चट्टान पर खड़ा था
त्यौरियाँ चढ़ा रहा था
कि मैं वहाँ क्यों हूँ
यदि मैं मछलियाँ नहीं पकड़ सकता
तो उसे क्यों नहीं पकड़ने देता।
उसने मेरे चेहरे के भाव खोजे
और नजदीक आ कर बोलाμ
तुम नहीं पकड़ सकते मछलियाँ
लेकिन रुको, तुम ज़ीना येव्तुशेंको के लड़के तो नहीं?
और वहाँ मैं थाμतुम नहीं जानते होंगेμ
कि कौन हूँ मैं
ईश्वर तुम्हें लम्बी उम्र दे
मास्को से
गर्मियों के लिए।
यदि तुम्हें बुरा महसूस न हो
मैं घर पर रहूँगा
वह बगल में बैठा और अपनी जेब टटोलने लगा
रोटियों का पूड़ा, टमाटर और नमक
मैं उसके सवालों का जवाब देता हुआ थका
वहाँ कुछ न था
कुछ नहीं जानना चाहता था वह
कि मेरी छात्रावृत्ति कितनी थी
कि प्रदर्शनी फिर कब शुरू होगी
वह खूसट और थका बूढ़ा
उसके पास कुछ तिक्त आक्षेप थे
कि युवक कुछ नहीं कर रहे
पुराने दिनों में
कम्सोमोल ऊब रहे थे यह दर्द था
मुझे याद है जब तुम्हारी माँ सत्राह साल की थी
लड़के उसे छेड़ते थे अकेले में
उस जैसी नहीं हो सकती तुम्हारी आवाज
और न नंगे पांव दौड़ सकते हो तुम
वर्दियाँ पहनते थे वे
लड़कियों को तितर-बितर करने के लिए।
मुझे याद है
वे तब तक चिल्लाते थे
जब तक कि चन्द्रमा अस्त नहीं होता था
बुर्जुआजी के अवशेष
वे संत थे
ओह! वे निरोध इस्तेमाल करते थे
वे हमेशा किसी न किसी विचार में रहते
जैसे बच्चों का राष्ट्रीयकरण
भले ही नाजुक समय में यह संक्रमण हो
लेकिन मुझे चिंता थी
तुम लोगों को देखते हुए।
बुरी बात ये कि
तुम्हारे पास कोई दिशा नहीं थी
और तुम लड़ सकते हो
यदि तुम चाहोμतुम सोचते नहीं हो युवकों की तरह
और उसी युग में हैं लोग विचारों से
यहाँ युवक हैं सुस्त
युवकों जैसे नहीं।
हाँ, क्या कहूँ! मेरे भतीजे को देखो
पच्चीस वर्ष भी पूरे नहीं होंगे उसे
इन जाड़ों में
लेकिन नहीं कह सकते तुम उसे
तीस वर्ष से कम
क्या हुआ!
वह भी तो दूसरों जैसा लड़का है
और देखो उन्होंने कमेटी में रखा उसे
वह वहाँ बैठता है, हरा मेमना
मालिक के इशारों पर तुड़ता-मुड़ता
शोषित
अब भी घूमता है वह अलग रास्ते पर
उसकी आँखों में दृढ़ता है
जैसे उसके वक्तव्यों में
शब्द के लिये नहीं है व्यवसाय
शब्दों को सुरक्षित रखने के लिए है
सरल और सहमतिपूर्ण वक्तव्यμ
वह कैसा नवयुवक है!
किस काम का ऐसा उत्साह?
‘स्वस्थ’ नहीं है तुम कह सकते हो
वह फुटबाल नहीं खेलता
और लड़कियाँ छेड़ी हैं उसने
अब स्वस्थ है
और फुर्सत के बारे में ख़याल!
प्रश्न है
ईमानदार असहमतियाँ हैं
ओह! युवा वर्ग ऐसा नहीं
जैसा उसे होना चाहिए
और न मछलियाँ हैं
या वे उनकी तरह नहीं हैं
एक गम्भीर चीखμ
‘अच्छा खाना हो गया
हमें बढ़ना चाहिए’
और उसके होंठ चटकारे
कुछ देर बाद बलसे पर
एक बड़ी और सुन्दर मछली थी
‘और मोटी नहीं है मछलीμऐह!’
उसे कुछ मिल गया था
वह आत्ममुग्ध और खुश था
मैंने सोचा तुम कह रहे होμ
‘मछलियाँ युवकों जैसी नहीं हैं’
वह चालाक दिखाई दियाμ
‘अह लेकिन वह उनमें नहीं थाμ
मैं यों कह रहा था’
वह मुस्काया
छोटी उँगली को मोड़ते हुए
जैसे कहने वाला हो
‘मछली को दिमाग में रखो’
बलसे के खत्म होने तक
मैं अन्त को सामने नहीं रख रहा
उस ढंग से।