तुम्हारे पालने के बाहर / तुषार धवल
तुम्हारे पालने के बाहर
एक रतजगा ऐसा भी है
जिसमें रात नहीं होती ।
जिसमें देह की परतें खुल जाती हैं
भाषा से शब्द झर जाते हैं
आँखें आँख नहीं रहतीं
वे स्वप्न हो जाती हैं
बोध के सन्दर्भ जिसमें उलट जाते हैं
काल का व्याकरण गल जाता है ।
तुम्हारे पालने के बाहर
एक थकान ऐसी भी होती है
जो अपनी ही ताजगी है
आशंकाएँ जिसमें खूब गरदन उठाती हैं
एक आक्रान्त स्नेह अपने भविष्यत संदिग्धों
की तलाश में होता है
और यहीं से उन सबका शिकार करता है
आने वाले दुर्गम पथों पर
माटी की नरम मोयम रखता हुआ
तुम्हारे पालने के बाहर
एक बीहड़ है जिसमें
एक बागी हुआ मन गाता रहता है
मानव मुक्ति के गीत
उसके हाथ
केसर कुदाल करतब करताल
होते रहते हैं
एक मोम हुआ हृदय ऐसा भी होता है
तुम्हारे पालने के बाहर
जो अपने दु:स्वप्नों और हाहाकारों में
तुम्हारी असंज्ञ चेतन मुस्कान
भर रहा होता है ।