किसी कम्युनिस्ट पार्टी का दफ़्तर / देवी प्रसाद मिश्र
कमरे में जो खिड़की बायीं तरफ खुलती है उसके ऊपर लटकता चे ग्वेवारा का
पोस्टर हवा में हिलता रहता है फटता रहता है और आवाज़ करता रहता है
मार्क्स लेनिन और ज्योति बाबू की शबीहों के नीचे एक आदमी कुहनी मेज़ पर
रखकर बैठा है -- निस्पन्द क्रुद्ध और प्रबुद्ध।
फिलहाल उसके पास क्रान्ति को नहीं दफ़्तर को सम्भालने का दारोमदार है जहाँ
दिन में तीन-चार कवि आ जाया करते हैं लगभग गारण्टी की तरह है कि उनका
विप्लवकारी पतन नहीं होगा परिवर्तन की उनकी आग धीरे-धीरे बुझेगी पूँजीवाद
का गहरा क्रिटीक लिए हुए धीरे-धीरे वे भारतीय जनतन्त्र में नौकरियाँ पाएँगे वे
धीरे-धीरे सब कुछ नहीं भूल जाएँगे इसलिए वे फैब इण्डिया के लम्बे कुर्ते पहनेंगे
और गमछा या मफ़लर गले में लपेटे मिलेंगे कि ज़रूरत हो तो बहुत बोलने के
बाद फेन और थूक पोंछा जा सके और मुँह ढँककर निकला जा सके । तो
कॉमरेड, पन्द्रह बाई पन्द्रह का यह कमरा नैतिकता की आख़िरी धर्मशाला है जो
इससे ज़्यादा नीमरौशन, निर्जन और उद्ध्वस्त नहीं हो सकती ।
कमरे में दो तीन घण्टे में चाय आ जाया करती है गाय भी आ जाती है जिसे
देखकर कम्यूनिस्ट कहता है कि गाय देश को बाँट देगी। दूसरे ने कहा कि
कुछ करना चाहिए। बट द प्रॉबलम इज़ मोबिलाइज़ेशन। व्हेयर इज़ द कनेक्ट ।
किसी आदमी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांकेर में आदिवासी नक्सलियों ने 17 ट्रक जला दिए जो माइनिंग के काम में आते थे। हिंसा से हम कहीं नहीं पहुँचेंगे -- किसी ने कहा तो किसी ने कहा कि आपको जाना भी कहाँ होता है मयूर विहार तक -- वहाँ तो आप बिना किसी विचारधारा के भी पहुँच सकते हैं। यह बात बताकर एक आदमी दरवाज़ा धाँय से बन्द करके निकल गया तो हरियाणवी गार्ड यह कहते हुए कि इतँड़ाँ तेज्ज धम्माका कैस्से हुआ आ गया है और पार्टी दफ़्तर के सोफ़े पर बैठने ही वाला था कि मेज़ पर झुके तनावग्रस्त कॉमरेड ने कहा -- अभी निकलो। मीटिंग चल रही है ।