भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं डाँटें / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:58, 15 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बात जब हो नहीं सही, डाँटें,
देखें ग़लती जहाँ, वहीं डाँटें।
घर में आये हों दोस्त जब मेरे,
कम-से-कम आप तब नहीं डाँटें।
राह चलते, दुकान पर, घर में,
है न अच्छा कि हर कहीं डाँटें।
आप के बाद मैं हुआ पैदा,
ग़लती मुझसे हुई यही, डाँटें।
ग़लतियाँ आप भी तो करते हैं,
मुझसे भी हो रहीं, नहीं डाँटें।