भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूल का पर्याय / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:54, 19 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र कुमार |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुछ न पूछो हाल इस जी का
आज दिन तृन तोड़ते बीता ।
हर ख़ुशी के साथ कोई फूल
भूल का पर्याय केवल भूल
बस यही हमने नहीं सीखा ।
दराज़ों में हाथ बन्द पड़े
मेज़ पर कुछ नींद के टुकड़े
समझ में आया तुम्हें रीता ।
समाचारों के लिए कहना
और अपने से छिपे रहना
रोज़ की यह ज़िन्दगी भी क्या ?