Last modified on 20 जुलाई 2015, at 13:53

हरित क्रान्ति / धूमिल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 20 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धूमिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इतनी हरियाली के बावजूद
अर्जुन को नहीं मालूम उसके गालों की हड्डी क्यों
उभर आई है । उसके बाल
सफ़ेद क्यों हो गए हैं ।
लोहे की छोटी-सी दुकान में बैठा हुआ आदमी
सोना और इतने बड़े खेत में खड़ा आदमी
मिट्टी क्यों हो गया है ।