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ग़ज़ल-ए-शहीदाँ / संतलाल करुण

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दुश्मने-सरहद को जोशाँ ख़ूँ दिखाने चल पड़े
वादियाँ ख़ूँ तर-बतर हम ख़ूँ नहाने चल पड़े |

सरज़मीं अब तक रही वाबस्तए जानो-जिगर
सरज़मीं के वास्ते अब सीना ताने चल पड़े |

हमज़बाँ देखा ग़जब लगते शरीफ़ों को गले
ज़ह्रागीं मारे-आस्तीं को ख़ुद मिटाने चल पड़े |

ख़ूब सौदाए-शहादत बढ़के याराँ ने किया
आज शैदाए-वतन फिर ख़ूँ बहाने चल पड़े |

घुसपैठिए सियाहदिल सरबरहना सरहदें
सरकोब सरबाज़ हम सरहद बचाने चल पड़े |
 
ऐ बटालिक, काक्सर, मश्कोह, द्रासो-कारगिल
लो सलामो-अम्न हम वादा निभाने चल पड़े |