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साबुन-पानी ज़िन्दाबाद ! / कर्नेय चुकोवस्की

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वह पागल, स्पंज मुस्टण्डा
मुझे डराए, जैसे डण्डा,
उस से डर कर भाग चला
पर वह जालिम नहीं टला,
मैं दाएँ, तो वह दाएँ
मैं बाएँ, तो वह बाएँ,
लाँघ गया मैं बाड़ मगर
झपटा वह फिर भी मुझ पर,
उसी समय घड़ियाल मित्र
वह मेरा प्यारा-प्यारा,
बच्चों के संग पड़ा दिखाई
उसने मुझे उबारा,

उसने झट स्पंज को निगला
वह हलवे-सा मुँह में पिघला,
फिर वह मुझे देख चिल्लाया
पैर पटकता भागा आया,
"जाओ, फ़ौरन, जाओ घर
-- वह बोला !
मुँह को धोओ मल मल कर
-- वह बोला !
पीटूँगा, खा जाऊँगा
-- वह बोला !"

भाग चला मैं तब सरपट
वापस आया घर झटपट,
                         मल-मल साबुन
                         मल-मल साबुन
बहुत देर तन साफ़ किया,
                         धब्बे धोए
                         स्याही धोई
मुँह का मैल उतार दिया ।

अब पतलून भागता आया
"पहनो मुझको," वह चिल्लाया,
तभी समोसा बोला आकर.
"मुँह में रख लो, मुझे उठाकर,"
नारंगी भी दौड़ी आई
सीधे मुँह के बीच समाई ।

लौटी अब पुस्तक भी मेरी
कापी भी आई वापस,
गणित, व्याकरण झूमे ख़ुश हो
नाच उठे दोनों बरबस.
इसी समय वह बड़ी चिलमची
अन्य सभी की जो सरदार,
'धो लो, धो लो' नाम है जिसका
जिसके बल का वार न पार,
भागी आई मुझे चूमती,
नाच नाचती और झूमती, बोली : "तुम कितने सुन्दर हो
अब तुम मुझे बहुत प्यारे हो ;
सब की आंखों के तारे हो."
हर दिन, हर दिन सुबह-शाम को
तन की करो सफ़ाई,
वरना सभी दूर भागेंगे
निश्चय मानो भाई ।
...
ख़ुशबू वाला प्यारा-प्यारा
साबुन ज़िन्दाबाद !
फूला-फूला नर्म तौलिया
                         वह भी ज़िन्दाबाद !
ज़िन्दाबाद रहे दाँतों का बढ़िया
                                       मंजन,
ज़िन्दाबाद रहे आँखों का बढ़िया अंजन ।
...
नल-टोंटी के नीचे बैठें
घर में स्नान करें
पानी ज़िन्दाबाद कि उससे
तन का ताप हरें ।