भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केवल यही / एलिसेओ दिएगो
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 6 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एलिसेओ दिएगो |अनुवादक=सर्वेश्वर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कविता कुछ नहीं है
सिवा एक प्राचीन स्टोव की चढ़ती
परछाईं में बातचीत के
जब सब चले गए हों,
और दरवाज़े के बाहर
अभेद्य वन सरसरा रहे हों ।
कविता केवल कुछ भ्रम है
जिनसे किसी को प्यार हो,
और जिनका क्रम समय ने बदल दिया हो,
जिनमें कि अब
केवल एक संकेत,
एक अनभिव्यक्त आशा,
वास करती हो ।
कविता और कुछ नहीं है
सिवा आनन्द के, परछाइयों में
बातचीत के,
जबकि और सब कुछ विदा ले चुका हो
और केवल ख़ामोशी हो ।