Last modified on 11 अगस्त 2015, at 15:14

यह धरती हरी-भरी रहेगी / रामकृष्‍ण पांडेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:14, 11 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्‍ण पांडेय |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किसी की भी युद्ध लोलुपता
विनष्ट नहीं कर सकती है
इस धरती को
यह धरती हरी-भरी रहेगी

हरे-भरे रहेंगे पेड़-पौधे
रंग-बिरंगे खिलते रहेंगे फूल
आकर्षक और सुगन्ध भरे

इन्हीं फूलों की तरह
खिली रहेगी
बच्चों के होठों पर हँसी

किसी की भी युद्ध लोलुपता
विनष्ट नहीं कर सकती है
इस धरती को
यह धरती हरी-भरी रहेगी