भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बल्ब / शंकरानंद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:40, 16 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरानंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इतनी बड़ी दुनिया है कि
एक कोने में बल्ब जलता है तो
दूसरा कोना अन्धेरे में डूब जाता है
एक हाथ अन्धेरे में हिलता है तो
दूूसरा चमकता है रोशनी में
कभी भी पूरी दुनिया
एक साथ उजाले का मुँह नहीं देख पाती
एक तरफ़ रोने की आवाज़ गूँजती है तो
दूसरी तरफ़ कहकहे लगते हैं
पेट भर भोजन के बाद
जिधर बल्ब है उधर ही सबकुछ है
इतना साहस भी कि
अपने हिस्से का अन्धेरा
दूसरी तरफ़ धकेल दिया जाता है
एक कोने में बल्ब जलता है तो
दूसरा कोना सुलगता है उजाले के लिए दिन रात ।