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तुम रोशनी / शंकरानंद

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पत्नी हेमा के लिए

न ओस की बूंदें सिहरन से भरती हैं
न ठण्डी हवा जमाती है बर्फ़ की तरह

चाँद फूल की तरह खिलने लगता है
तारे छितराने लगते हैं अपना रंग

तुम पास हो और कहीं अन्धेरा नहीं उदासी नहीं चुप्पी नहीं

ये फूल बिना मौसम के भी खिल रहे हैं और
इनका रंग हद से ज्यादा गाढ़ा हो रहा है

तुमने तो मौसम को बदल दिया है
चुपके-चुपके बिना बताए ।

तब
असंख्य बार मैंने गिनना चाहा
लेकिन तारे कभी उँगली पर नहीं आए

हमेशा बाहर रहे और उनका टिमटिमाना
धूल ने भी अपने पानी में देखा

बच्चे जब-जब थके
बैठ गए अगली रात के इंतज़ार में और
फिर निराश हुए
ये तारे फिर नहीं गिने गए

ये तारे जहाँ रहे
कभी झाँसे में नहीं आए किसी के

वरना जिनके पास ताक़त है
उनकी जेबों में टिमटिमाते रहते ।