आज फिर गाँव जाके आया हूँ ।
सब से नज़रें चुराके आया हूँ ।
जिस की देहरी पे मेरा काबा है,
मैं वहीं सिर झुका के आया हूँ ।
सुखा रहा था जिसे वक़्त अपनी आँखों से,
वो एक बूँद, नदी में गिरा के आया हूँ ।
तुझे भी रेत से है प्यार बहुत जानता हूँ,
मैं अपनी रूह उसी में छुपाके आया हूँ ।