भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओ री हवा / निर्मला सिंह

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:52, 27 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=निर्मला सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ री हवा, ओ री हवा,
मुझको बता अपना पता!

बोल कहाँ से आती तू,
और कहाँ को जाती तू?
मौसम के संग-साथ क्यों?
रूप बदलकर आती तू।
घर है कहाँ, जल्दी बता?
ओ री हवा, ओ री हवा!

सर्दी में शीत लहर बन,
गरमी में जाती हो तन।
लू बनकर करती हो तंग,
अजब-गजब है तेरे ढंग।
देख री ऐसे ना सता,
ओ री हवा, ओ री हवा!

आ गया बसंत आ गया,
सबको झट बतलाती तू।
फूलों से ले कर खुशबू,
दूर-दूर तक जाती तू।
देती आलस को धता,
ओ री हवा, ओ री हवा!