Last modified on 28 सितम्बर 2015, at 00:00

सावन का झूला / नवीन सागर

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 28 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सावन का झूला इस बार
इतना बड़ा डालना
जिसमें समा जाए संसार।
उस डाली पर
जो फैली है आसमान के पार
उस रस्सी का
कोई न जिसका पारावार!
एक पेंग में मंगल ग्रह के द्वार
और दूसरी में
इकदम से अंतरिक्ष के पार!