Last modified on 30 सितम्बर 2015, at 00:08

सबने देखा / अरविंद कुमार

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:08, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविंद कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पेड़ जब शीश नवाते हैं
पात जब गौरव पाते हैं,
हवा सिंहासन पर चढ़कर
सवारी लेकर आती है।
हवा को सबने देखा है।

पतंग जब ऊपर चढ़ती है
ठुमकती है, बल खाती है,
हवा तब घुटनों पर झुककर
गीत आशा का गाती है।
हवा को सबने देखा है।

तितलियाँ चंचल उड़ती हैं
गुलाबों पर मँडराती हैं,
हवा तब वासंती होकर
गीत यौवन का गाती है।
हवा को सबने देखा है।

शाख कलियों से लदती है
और जब हौले हिलती है,
हवा तब खिलती-मुसकाती
सभी से मिलने आती है!
हवा को सबने देखा है।

-साभार: नंदन, सितंबर, 1999, 30