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अज्ञात महाद्वीप / मुकेश चन्द्र पाण्डेय

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आजतक विश्व में हो चुकी सभी महान खोजों
का आधार अनुभवहीनता ही रहा है।
कितनी ही परिकल्पनाएं, नमूने,
सिद्धांत, शोधें, मॉडल व नक़्शे धरे के धरे रह गए,
और कितनी ही पूर्वनिर्धारित रूप रेखाएं ख़ारिज कर दी गयीं।

अम्मा हव्वा व बाबा आदाम ने भी
नहीं पढ़ी होंगी कभी अनुभवों कि किताबें।
व पूर्वलिखित सभी फिलोसॉफीयाँ भी जब लिखी जा रही होंगी
संभवतः अटकलों से भरी तरुण जिज्ञासाएँ ही रही होंगी।

युद्ध भूमि पर लड़ रहे
किसी भी सिपाही को नहीं होता है मरने का अनुभव,
ना ही दुनिया कि कोई भी माँ
अपने दूसरे बच्चे से अधिक स्नेह करती दिखती हैं कहीं...

कवि द्वारा लिखी गयी हर कविता भी,
कविता लिखने का पहला प्रयास ही होता है,
और हर कालजयी कृति पर भी बनी रहती हैं कितनी ही आशंकाएँ।

परन्तु फिर भी तुम नकार देते हो मुझे
कह कर कि "मैं अनुभवहीन हूँ।"

तो सुनो हाँ मैं अनुभवहीन हूँ
परन्तु मेरे अंतर में उमड़ रहा है भावनाओं का सैलाब,
मेरा हृदय ज्वलंत है हज़ारों उम्मीदों से,
व कितने ही स्वप्न दृश्य बन चमक रहे हैं आँखों पर.
मेरे मस्तिष्क में चकराते रहते हैं जुनूनी भंवर,
और मेरा पूरा शरीर थरथराता रहता है व्यग्रतावश।

हाँ मैं अनुभवहीन हूँ
और ताउम्र भटकता रहूँगा अनुभवहीन ही
परन्तु मुझे पूरा यकीन है की
अंतत: खोज ही लूंगा अपने स्वप्नों पर का एक पूरा महाद्वीप।

क्योंकि अंतत: "कोलम्बस" महान ने भी
खोज ही निकला था अमरीका चाहे भारत न सही...