भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भारी बस्ता / उषा यादव
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:53, 2 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
माँ तेरी छोटी-सी गुड़िया,
इसको उठा-उठा हारी है,
उफ, बस्ता कितना भारी है।
कैसे करूँ किताबें कम कुछ,
सब विषयों को पढ़ना होगा,
पैंसिल बॉक्स छूट न जाए,
इसे ध्यान से धरना होगा।
अपनी सारी चीजें गिनकर
ले जाना होशियारी है।
ढेर किताबें, ढेर कापियाँ,
लंच बॉक्स भी बड़ा जरूरी,
टॉफी की रंगीन पन्नियाँ,
ले जाना भी है मजबूरी।
राधा की गुड़िया की शादी-
की करनी तैयारी है!