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मेरे खिलौने / भारत भूषण अग्रवाल
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कितने सुंदर और सलौने,
देखो मेरे नए खिलौने।
यह देखो फर्तीला घोड़ा,
नहीं चाहिए इसको कोड़ा।
चाबी से चलता है सरपट,
और लौटकर आता झटपट।
यह देखो यह बिल्ली आई,
आ पंजों में गेंद दबाई।
जब भी इसकी पूँछ घुमाऊँ,
यह कहती है ‘म्याऊँ-म्याऊँ’।
कंधे पर बंदूक उठाए,
यह लो वीर सिपाही आए।
ताकत वाले, हिम्मत वाले,
ये हैं इन सबके रखवाले!