भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सैर-सपाटा / कृष्णकांत तैलंग
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:32, 4 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्णकांत तैलंग |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं रॉकेट एक बनाऊँगा,
उड़ अंतरिक्ष में जाऊँगा!
चाँद-सितारों को छू लूँगा
दूर ग्रहों की सैर करूँगा!
लोग वहाँ के होंगे कैसे,
क्या होंगे हम लोगों जैसे!
अपना रॉकेट उनको दूँगा,
उड़न तश्तरी उनसे लूँगा!
रोज सुनाती हमें कहानी,
परी लोक है, कहती नानी!
वहाँ मिलेंगी परियाँ प्यारी,
रंग-बिरंगी दुनिया न्यारी!
खूब करूँगा सैर सपाटा,
आऊँगा कर उनको टा-टा!