Last modified on 5 अक्टूबर 2015, at 00:14

बच्चे की चाह / राधेश्याम प्रगल्भ

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:14, 5 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राधेश्याम प्रगल्भ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बच्चे की चाह

सपने में चाहा नदी बनूँ
बन गया नदी,
कोई भी नाव डुबोई मैंने
नहीं कभी।
मैंने चाहा मैं बनूँ फूल,
बन गया फूल,
बन गया सदा मुस्काना ही
मेरा उसूल।
मैंने चाहा मैं मेंह बनूँ,
बन गया मेंह,
बूँद-बूँद मेरी बरसाती
रही नेह।

मैंने चाहा मैं छाँह बनूँ,
बन गया छाँह,
बन गया पथिक हारे को
मैं आरामगाह।
मैंने चाहा मैं व्यक्ति बनूँ
सीधा-सच्चा,
खुल गईं आँख, मैंने पाया
मैं था बच्चा।