भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथी दादा / जगदीशचंद्र शर्मा
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:36, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीशचंद्र शर्मा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हाथी दादा चले घूमने होकर जब तैयार,
बाहर उनके लिए जीप सी खड़ी हुई थी कार।
उसके भीतर ज्यों ही दादा होने लगे सवार,
टायर फटा बोझ से भाई कार हुई बेकार।