भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नानी का बिस्तर / मोहम्मद साजिद खान
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 7 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साजिद खान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नानी जी के बिस्तर की
सुन लो, बात निराली है,
रखी हुईं ढेरों चीजें
जगह न कोई खाली है।
कढ़ा हुआ बटुआ प्यारा
दाँत खोदनी छोटी-सी,
दूध धुला रूमाल रखा
तकिया फूली, मोटी-सी।
चंदन की है छड़ी रखी
मुठिया चाँदी वाली है।
दियासलाई की डिब्बी
ताकत के टानिक रक्खे,
पानदान प्यारा-प्यारा
और ढेर सारे सिक्के।
दुबकी बिल्ली बैठी है
जो नानी ने पाली है।