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मासूम भोली लड़की / सुशीला टाकभौरे

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उस छोटी-सी लड़की को
रख दिया है
मैंने ताक़ पर
मासूम भोली
टुकुर-टुकुर देखा करती थी
हर बात को भौंचक होकर

रास्ता पार करना हो
या भीड़ का सामना हो
पकड़ लेती थी माँ का हाथ
आँचल में मुँह छिपाती
नहीं देखती थी
अपनी राह, अपनी मंज़िल
कैसे करेगी ज़िन्दगी बसर?
रख दिया है मैंने उसे ताक़ पर
'ताक़' जहाँ दीपक जलता है
ऊँचाई भी है
पहले वह अपने घर की
ज़मीन देखेगी
फिर छत
वह देखना चाहेगी
आसमान, पक्षी, पतंग
उड़ाना चाहेगी दूर बहुत दूर
दुनिया को अपनी नज़र से देखेगी

'ताक़' पर रख दिया है मैंने
कठोर बनकर
सिखाना चाहती हूँ
लड़की / तुम किसी पर निर्भर नहीं
स्वयं पूर्ण हो
तुम मुझसे अलग नहीं
पर तुम्हारा अलग अस्तित्व है
तुम्हारी राह, तुम्हारी मंज़िल
मुझसे बहुत आगे है

बहुत-से रास्ते पार करने हैं
भीड़ का सामना करना है

भीड़ से अलग
अपनी पहचान बनानी है
तुम्हें जूझना है
आकाश को चूमना है
इसीलिए अपने से अलग
रख दिया है मैंने तुम्हेँ
ताक़ पर!