भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा घर / पूर्णिमा वर्मन
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:14, 14 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैंने सुई से खोदी जमीन
‘फुलकारियां’ उगाई दुपट्टों पर
मैंने दीवारों में रचे ‘ताख़’ दीवट वाले
मैंने दरवाज़ों को दी राह बंदनवार वाली
मैंने आग पर पकाया स्वाद
अंजुरी में भरा तालाब
मैंने कमरों को दी बुहार
मैंने नवजीवन को दी पुकार
मैंने सहेजा
उमरदराज़ों को उनकी अंतिम सांस तक
मैंने सुरों को भी छेड़ा बांस तक
मेरे पसीने से बहा यश का गान
पर
मेरे घर पर लिखा तुम्हरा नाम...!