भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता: चार (औरत होना...) / अनिता भारती
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:00, 16 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatStreeVim...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपने सपने
अपनी जान
अपने प्राण
स्पर्श कर अपने आप को इक बार
फिर देख
औरत होना
कोई गुनाह नहीं...!