हम्द / ज़ाहिद अबरोल
हम्द<ref> ईश्वर स्तुति</ref>
रोज़-ए-अज़ल<ref>अनादि</ref> से रोज़-ए-अबद<ref>अनन्त</ref> तक इंसाँ की तक़दीर हो तुम
हर तौक़ीर<ref>प्रतिष्ठा</ref> तुम्हारी बख़्शिश<ref>देन, वरदान</ref> इल्म <ref>ज्ञान</ref>की हर तहरीर<ref>लिखी हुई बात</ref> हो तुम
सहराओं में पानी हर बूँद तुम्हारी ही ने'मत
और दरिया में डूब रही कश्ती की हर तदबीर<ref>कोशिश</ref>हो तुम
बच्चों की मुस्कान बुज़ुर्गों की शफ़क़त<ref>आशीर्वाद</ref>भी तुम से है
और जवाँ लोगों के सुनहरे ख़्वाबों की ता’बीर हो तुम
सूरज की सब धूप, धूप में आग तुम्हारे ही दम से
और दरख़्तों के साये में नींद की जू-ए-शीर<ref>मीठे पानी की नदी</ref>भी तुम
इंसाँ से इंसाँ का रिश्ता गंग-ओ-जमन<ref>गंगा और यमुना</ref>से ज़मज़म<ref>मक़्का में एक पवित्र पानी का कुआँ</ref>तक
इस रिश्ते को बाँधने वाली उल्फ़त की ज़ंजीर हो तुम
प्यास से मरने वालों का हर फ़ख़्र-ए-शहादत<ref>शहीद होने का गर्व</ref> तुम से है
हक़ की ख़ातिर लड़ने वालों की हर इक शमशीर<ref>तलवार</ref> हो तुम
'ज़ाहिद' इन्सानों ने ये पंछी पिंजरे में ही रक्खा क़ैद
प्यार को जो अल्फ़ाज़ की वुस’अत<ref>विस्तार</ref> दे वो आलमगीर<ref>विश्वव्यापी</ref> हो तुम