भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोड़ो जावण दो / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:22, 22 अक्टूबर 2015 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोड़ो जावण दो
थांनै दाय नीं आवैला-
कविता।

थांरी आंख जाणै
फगत सात रंग
पैली तो सुभट सुणो
कविता रै पड़दै में रैवै-
उण रा रंग
अर सात नीं
थे ओळखो सताईस रंग
फेर ई गच्चो खावोला
जद-जद बांचोला कविता।

छोड़ो जावण दो
थांनै दाय नीं आवैला-
कविता
क्यूं कै
थे थांरै रंगां री सींव
लेय नै जोवोला रंग
अर हरेक नुंवीं कविता
थांनै दीसैला सदीव-
रंग-बायरी!