भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बात करनी मुझे मुश्किल कभी / ज़फ़र
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 6 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बहादुर शाह ज़फ़र |संग्रह= }} बात करनी मुझे मुश्किल कभी ...)
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी
उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी
अक्स-ए-रुख़-ए-यार ने किस से है तुझे चमकाया
ताब तुझ में माह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
क्या सबब तू जो बिगड़ता है "ज़फ़र" से हर बार
ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी