भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेत / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 29 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी' |संग्रह=अमर उ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जे नीं बदळणो चावै
तो
इंकलाब रै मारग
थनै चालणो पड़सी
आवण आळी पीढ्यां सारू
लड़णो पड़सी
चेत मानखा, चेत!
जे अबै ई नीं चेत्यो
साफ सुणलै—
इण दुनिया मांय
भाईड़ा थनै
अर आवण आळी पीढी नै
बे मौत मरणो पड़सी।