भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरवाज़े खड़े हुए लोग / सत्य मोहन वर्मा
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:57, 10 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्य मोहन वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दरवाज़े खड़े हुए लोग,
चौखट में जड़े हुए लोग
सुर्यगीत लिखने का मन,
कालिख में मढ़े हुए लोग
सोने के पिंजरे की धुन,
तोतों से पढ़े हुए लोग
बंजारे सपनों का पंथ,
खूँटी से गड़े हुए लोग
सिरहाने क्रांति का कफ़न,
मुर्दों से पड़े हुए लोग
रेत में छिपा कर के सिर,
आंधी से लड़े हुए लोग ।।